पत्रिका: समावर्तन, अंक: मार्च 2012, स्वरूप: मासिक, संपादक: रमेश दवे, आवरण/रेखाचित्र: अक्षय आमेरिया, , पृष्ठ: 64, मूल्य: 25 रू.(वार्षिक 250 रू.), ई मेल: ,वेबसाईट: उपलब्ध नहीं , फोन/मोबाईल: 0734.2524457, सम्पर्क: माधवी 129, दशहरा मैदान उज्जैन म.प्र.
समावर्तन ने अल्प समय में साहित्य जगत में विशिष्ठ स्थान प्राप्त किया है। यह अन्य पत्रिकाओं के लिए पे्ररणास्पद है। पत्रिका के समीक्षित अंक में ख्यात साहित्यकार रमेश दत्त दुबे के समग्र व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है। उनका आत्मकथ्य, जनसत्ता की टिप्पणियां तथा लेख आदि साहित्य के विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित करते हंै। उषा भटनागर तथा मुकेश वर्मा से उनकी बातचीत साहित्य की वर्तमान दशा व उसकी परिनियति पर गंभीर विमर्श है। दूसरे भाग में ख्यात संस्मरणकार कांतिकुमार जैन जी की साहित्यिक यात्रा का लेखा जोखा है। उनकी तमाम रचनाएं नवीन ही नहीं साहित्य से जुड़े अन्य लेखकों के लिए मार्गदर्शक रही है। साधना अग्रवाल की उनसे बातचीत साहित्य के वर्तमान स्वरूप को कटघरे में खड़ा करती है। धनंजय वर्मा, हसन जमाल, इला भटट, श्रीराम दवे तथा मुकेश वर्मा के आलेख तथा स्तंभ पत्रिका के अन्य अंकों के समान स्तरीय व पठनीय है।

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