पत्रिका: निकट, अंक: जून-अक्टूबर 2011, स्वरूप: अर्द्ध वार्षिक, संपादक: कृष्ण बिहारी, पृष्ठ: 144, मूल्य: 25रू (वार्षिक: 100 रू.), मेल: krishnabihari@yahoo.com ,वेबसाईट: उपलब्ध नहीं , फोन/मोबाईल: 971505429756, सम्पर्क: Po box no. 52088, Abudhabi, UAE
अमीरात से प्रकाशित इस पत्रिका ने प्रारंभ से ही हिंदी साहित्यजगत में अपनी पहचान बना ली है। इसके पांच अंक साहित्य की प्रत्येक विधा में प्रकाशित सामग्री विविधतापूर्ण व जानकारीपरक है। समीक्षित अंक में प्रकाशित रचनाओं का स्तर किसी भी प्रतिष्ठित भारतीय पत्रिका से कमतर नहीं है। इस अंक में प्रकाशित कहानियों में नेपथ्य का नरक(अपूर्व जोशी), ख़सम(हरि भटनागर), सुनो तो पुरबैया(जयश्री राय), आदमी और औत उर्फ बीच रात की डोरी(प्रमोद सिंह), हक(रवि अग्निहोत्री), ढलान पर कुछ पल(प्रताप दीक्षित), सड़क की ओर खुलता मकान(रूपसिंह चंदेल) एवं ससमाप्त(उर्मिला शिरीष), अनभिज्ञ(राजेन्द्र दानी) प्रमुख हैं। प्रत्येक कहानी समसामयिक परिस्थितियों वातावरण को लेकर रची गई है। इनमें समाज के प्रत्येक वर्ग को समुचित महत्व दिया गया है। प्रेमिला सिंह, मोहन सिंह कुशवाहा, उत्पल बनर्जी, मंजरी श्रीवास्तव, प्रदीप मिश्र, आशा श्रीवास्तव, कमलेश भट्ट, अनीता भुल्लर, श्रीप्रकाश श्रीवास्तव, परमिंदर जीत, वीरेन्द्र आस्तिक, यतीन्द्रनाथ राही तथा जगन्नाथ त्रिपाठी की कविताएं प्रभावित करती है। विज्ञान भूषण एवं अमरीक सिंह दीप की लघुकथाएं भी उपयोगी हैं। चंद्रशेखर दयानंद पाण्डेय, संजेश जोशी एवं राजेन्द्र राव के आलेखों में विषय की विविधता के साथ समकालीन परिस्थितियों का पर्याप्त ध्यान रखा गया है। पत्रिका का कलेवर, साज सज्जा व विविधतापूर्ण सामग्री प्रभावशाली है।

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