पत्रिका: पाठ , अंक: जुलाई-अगस्त वर्ष 2011, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: देवांशु पाल, पृष्ठ: 80, मूल्य: 20 (वार्षिक 100रू.) , ई मेल: उपलब्ध नहीं, वेबसाईट:उपलब्ध नहीं , फोन/मो. , सम्पर्क: गायत्री विहार, विनोबा नगर, बिलासपुर छतीसगढ़

इस लघु पत्रिका का प्रत्येक अंक अच्छी जानकारीपरक रचनाओं से युक्त होता है। इस अंक में रामचंद सरोज की लम्बी कविता एक विशिष्ट रचना कही जा सकती है। संवाद के अंतर्गत विनोद शाही से सरसेम गुजराल की बातचीत में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए विकास को जमीन दिया जाना महत्वपूर्ण माना गया है। आलेखों में रामनिवास गुंजन, अनिता पालीवाल एवं शिवप्रसाद शुक्ल के लेख साहित्य से जुड़े विषयांे पर गहन दृष्टिकोण है। टिप्पणी के अंतर्गत ख्यात लेखक व साहित्यकार अलीक का लेख हम लड़ेगें प्रभावित करता है। बहुत दिनों पश्चात उनकी कोई रचना साहित्यिक पत्रिका में पढ़ने में आयी है। सभी कहानियां भले ही नए विषयों को लेकर न लिखी गई हों पर उनकी मंशा के केन्द्र में वर्तमान समाज की दयनीय दशा को सुधारने का विशिष्ट भाव महसूस किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण से विजय व शीतेन्द्र नाथ चौधुरी की कहानियां विचारणीय है। विलास गुप्ते का लेख भविष्य में नाटक की आहट रंगमंच की दुनिया पर तार्किक ढंग से अपना मत रखता है। वरिष्ठ साहित्यकार रामदरश मिश्र की डायरी कोहरा कहानी एवं कविता विधा से अलग हटकर लिखने के बारे में विचार कर रहे युवा लेखकों के लिए मार्गदर्शक है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं व लेख आदि भी प्रभावित करते हैं।

2 टिप्पणियाँ

  1. अखिलेश जी आपके प्रयास बहुत सराहनीय है. आपके द्वारा लेखक वर्ग बहुत लाभान्वित होगा. आपकी यह निःस्वार्थ सेवा अभिनन्दनीय है. अभी तक जितने ब्लॉग देखे हैं सभी में कुछ अपना जरुर होता है मगर आपके ब्लॉग में आप केवल नींव के पत्थर का कार्य कर रहे हैं. साधुवाद .

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  2. इस पत्रिका का नाम पहली बार सुना है। जानकारी के लिए धन्‍यवाद। जिस तरह आप दूर-दराज की पत्रिकाओं को अपने ब्‍लॉग में स्‍थान देते हैं, लगता है हिन्‍दी की कोई पत्रिका आपसे अछूती नहीं रहेगी। आपका ब्‍लॉग हिन्‍दी पत्रिकाओं के कैटलॉग का काम करता है।

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