पत्रिका: peraranaa, अंक: जनवरी मार्च2011अप्रैल में प्रकाशित, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: अरूण तिवारी, , पृष्ठ: 204, मूल्य: 50रू (वार्षिक: 200 रू.), मेल: , ,वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मोबाईल: 0755.2422109, सम्पर्क: -74, पैलेस आरचर्ड, फेज 3, सर्वधर्म के पीछे, कोलार रोड़ भोपाल .प्र.
त्रैमासिक
पत्रिका पेरेणा का प्रत्येक अंक विशेषांक के समान होता है। इस अंक में भी यही विशेषता दिखाई देती है। इसे नारी अस्मिता अंक दो के रूप में प्रकाशित किया गया है। पहले अंक को साहित्य जगत में भरपूर समर्थन मिला था। उसी स्तर की रचनाएं भी इस अंक में शामिल की गई है। प्रमुख आलेखों में श्रीमती कमल कुमार, अनिता सिंह एवं डाॅ. लता सुमन के लेख साहित्य में स्त्री पात्रों की अच्छी व्याख्या करते हैं। पत्रिका के अंक में नारी विषयक कहानियां भी अच्छी तरह से प्रस्तुत की गई है। इनमें विशेष रूप से शुभकामना(सुषमा मुनीन्द्र), दुनिया(सुमित्रा महरोल) तथा अस्तित्व(नीलमणि शर्मा) का केनवास आधुनिक विषय वस्तु से होता हुआ हमारे गौरवशाली अतीत की ओर ले जाता है। ख्यात कवि लाल्टू की कुछ कविताएं जैसे ‘कविता नहीं’, तीन सौ युवा लड़कियां’, चैटिंग प्रसंग में नयापन है। पदमजा शर्मा, परशुराम शुक्ल तथा राधेलाल विजघावने की कविताएं भी अच्छी व ध्यान देने योग्य हैं। नवल जायसवाल, कमल किशोर गोयनका, प्रमोद भार्गव व विनय उपाध्याय के लेखों में साहित्य के साथ साथ समाज के विभिन्न वर्गो पर भी दृष्टिपात किया गया है। इस अंक की लघुकथाएं प्रभावित नहीं कर सकीं हंै। ख्यात साहित्यकार व प्रगतिशील आंदोलन के तत्कालीन स्तंभ स्वर्गीय कमलाप्रसाद जी पर एकाग्र स्मरण खण्ड पत्रिका की एक विशिष्ठ उपलब्धि है। अन्य रचनाएं भी पढ़ने व विचार करने योग्य हैं। समीक्षा जनसंदेष टाइम्स में दिनांक 19.06.2011 को published हो चुकी है।

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