पत्रिका: हिंदी चेतना, अंक: अक्टूबर 2010, स्वरूप: मासिक, प्रमुख सम्पादक: श्याम त्रिपाठी, संपादक: डाॅ. सुधा ओम ढीगरा, पृष्ठ: 82, ई मेल: hindichetna@yahoo.ca , वेबसाईट: http://www.hindi-chetna.blogspot.com/ , http://www.vibhom.com/ फोन/मो. (905)7165, सम्पर्क: 6 Larksmere Court, Markham, Ontario L3R3R1
विश्व प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका हिंदी चेतना का समीक्षित अंक 48 महामना मदनमोहन मालवीय जी पर एकाग्र है। अंक में मालवीय जी पर संग्रह योग्य पठनीय सामग्री का प्रकाशन किया गया है। अब तक भारत सहित किसी भी देश में मालवीय जी पर इतनी अधिक विविधतापूर्ण व उपयोगी सामग्री किसी पत्रिका में पढ़ने में नहीं आई है। संस्मरण खण्ड के अंतर्गत मालवीय जी पर एकाग्र संस्मरण व आलेखों का प्रकाशन किया गया है। इनमें उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के साथ साथ रचनाकारों ने अपने विचार भी व्यक्त किए हैं। सभी लेख मालवीय जी के विविध स्वरूपों पर भलीभांति प्रकाश डाल सके हैं। महामना का हिंदी प्रेम(चंद्रमौलि मणि), महामना का विलक्षण(गिरधर मालवीय), महामना मदनमोहन(ओमलता अखौरी), राष्ट्रशिक्षक पंडित(डाॅ. चंद्र सूद), मनुष्य में पशुत्व....(वीरभद्र मिश्र), मानस सुत अथक...(वेदप्रकाश वटुक), अत्यंत पवित्र था...(डाॅ. शंकरदयाल शर्मा), वे बातें वे छवियां(राजकुमारी सिन्हा), वह युवक(गोपालदास नागर), मालवीय जी और हिंदी(डाॅ. दिग्विजय सिंह), प्यार की सौगात(डाॅ. अफरोज ताज), सबसे बड़ा भिक्षुक(शीला मालवीय), मेरे परिवार जैसे(डाॅ. आनंद संुदरम्), उन्होंने पत्थरों में जान डाल दी(अखिलेश शुक्ल) अमन की आशा(डाॅ. गुलाम मुतर्जा शरीफ) एवं हिंदी के पितामाह(प्रो. हरिशंकर आदेश) आलेखों संग्रह योग्य व हिंदी के सामान्य पाठक से लेकर शोधार्थियों के लिए समान रूप से उपयोगी हैं। महामना जी पर एकाग्र कविताएं उनके जीवन संघर्ष व आम जन की भलाई के लिए किए गए कार्यो पर अपने अपने दृष्टिकोण से प्रकाश डालती हैं। श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी, राजकुमारी सिन्हा, अमित कुमार सिंह, मैथिलीशरण गुप्त तथा संजीव सलिल की कविताएं मालवीय जी के प्रति श्रृद्धांजलि के साथ साथ उनके द्वारा किए गए कार्यो का पुर्नस्मरण भी है। पत्रिका की अन्य रचनाओं में सीताराम चतुर्वेदी व श्रीकांत कुलश्रेष्ठ की रचनाएं भी उल्लेखनीय है। श्री श्याम त्रिपाठी जी का संपादकीय अंक के संयोजन व प्रस्तुतिकरण में अथक परिश्रम, रचना संग्रह व महामना अंक प्रकाशन की दृढ़ इच्छा शक्ति व्यक्त करता है। अंतिम पृष्ठ पर पत्रिका की संपादक डाॅ. सुधा ओम ढीगरा ने स्पष्ठ किया है कि इस अंक की योजना बहुत पहले बन गई थी। बुद्धिजीवियों व रचनाकारों को मालवीय जी पर अंक न निकालने की सलाह दी थी। यह प्रसन्नता की बात है कि डाॅ. सुधा जी के जुनून तथा कर्मठता ने एक जन-उपयोगी व सार्थक अंक पाठकों के सामने लाने का भागीरथी प्रयास सफलतापूर्वक किया है। इससे पाठकों को मालवीय जी के जीवन संघर्ष से प्रेरित होने व लाभ उठाने का अमूल्य अवसर मिलेगा।

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