पत्रिका: पाखी, अंक: दिसम्बर 2010, स्वरूप: मासिक, संपादक: प्रेम भारद्वाज, पृष्ठ: 120, रेखा चित्र: राजेन्द्र परदेसी, बंशीलाल परमार, मूल्य: 25रू.(वार्षिक 240), ई मेल: pakhi@pakhi.in , वेबसाईट: http://www.pakhi.in/ , फोन/मो. 0120.4070300, सम्पर्क: बी-107, सेक्टर 63, नोएड़ा 201303 उ.प्र.
साहित्य जगत की अग्रणी पत्रिका पाखी के इस अंक में सामाजिक व्यवस्था व उसकी बनावट को उजागर करती कहानियों का प्रकाशन किया गया है। प्रकाशित कहानियों में क्या मनु लौटेगा?(विजय), मेमोरी फुल(राजेन्द्र दानी), एक अंजाने खौफ की रिहर्सल(मुर्शरफ आलम जौकी), ये भी समय है(दुष्यंत), वह टेªन निरंजना को जाती है(संजीव चंदन) एवं राख होती जिंदगी(शिवअवतार पाल) सम्मलित है। वाद, विवाद, संवाद कालम के अंतर्गत अजय वर्मा, दिनेश कर्नाटक, संदीप अवस्थी तथा रूपलाल बेदिया के विचार प्रकाशित किए गए हैं। राजकुमार कुम्भज, प्रमोद कुमार व रामजी तिवारी की कविताएं भी सामाजिक परिवेश की रक्षा करते हुए उसे जटिल होने से बचाती दिखाई देती है। हमेशा की तरह राजीव रंजन गिरि, विनोद अनुपम व प्रतिभा कुशवाहा के कालम अच्छे व सकारात्मक सोच लिए हुए हैं। मेरी बात के अंतर्गत अपूर्व जोशी के विचार व कमल चोपड़ा की लघुकथाएं प्रभावित करती है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं एव पत्र भी जानकारीपरक हैं।

2 टिप्पणियाँ

  1. जानकारी ओर समिक्षा के लिये आप का धन्यवाद

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  2. आपकी समीक्षा से पत्रिका का मूल्याङ्कन हो जाता है.. सराहनीय प्रयास..

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