पत्रिका: वागर्थ, अंक: नवम्बर 2010, स्वरूप: मासिक, सम्पादक: विजय बहादुर सिंह, पृष्ठ: 120, मूल्य:20रू.(वार्षिक 200रू.), ई मेल: , वेबसाईट: , फोन/मो. 033.32930659, सम्पर्क: भारतीय भाषा परिषद, 36 ए, शेक्सपियर शरणि, कोलकाता
पत्रिका का समीक्षित अंक इसके पूर्ववर्ती अंकों के समान संग्रह योग्य है। अंक में वर्ष 2010 में साहित्य के नोबल पुरस्कार पर ख्यात कवि व आलोचक अशोक वाजपेयी जी का लेख काफी कुछ कहता है। नद दुलारे वाजपेयी जी का सामाजिक सदभाव व समरसता पर लेख तथा मकबूल फिदा हुसैन से सीमा चैधुरी की बातचीत इस समरसता पर विस्तार से विचार करती है। स्त्री की आवाज के अंतर्गत चंद्र किरण सौनेरेक्सा का लेख काफी मायने रखता है। ख्यात कथाकार उदयप्रकाश, स्वप्निल श्रीवास्तव, शोभा सिंह व प्रत्यूष चंद्र मिश्र की कविताएं समाज में व्यापप्त असमानताओं पर विचार लोगों को एक दूसरे के करीब लाने में तत्पर दिखाई देती हैं। दोनों कहानियां(बनियान-उमेश अग्निहोत्री, रणनीति-प्रमोद कुमार अग्रवाल) भी समाज व समाजिकता के लिए प्रयासरत हैं। राम मेश्राम की ग़ज़लें तथा अनुभूति के अंतर्गत विजयदेव नारायण शाही(प्रस्तुति-कमल किशोर गोयनका) पत्रिका की अनोखी तथा संग्रह योग्य प्रस्तुति है। आलोचना पसंद करने वाले पाठकों के लिए प्रो. मैनेज र पाण्डेय का लेख हिंदी आलोचना और मुक्ति का सवाल एक पठनीय व मनन योग्य लेख है। पत्रिका की अन्य रचनाएं समीक्षाएं, पत्र आदि भी स्तरीय हैं। हमेशा की तरह संपादकीय एक गंभीर चिंतन मनन योग्य लेख की तरह है।

1 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने