पत्रिका: हिंदुस्तानी जबान, अंक: जुलाई-सितम्बर10, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादकः डाॅ सुशीला गुप्ता, पृष्ठ: 46, मूल्य:10रू.(.वार्षिक 40रू.), ई मेल: , वेबसाईट/ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 22812871, सम्पर्क: महात्मा गांधी मेमोरियल रिसर्च सेंटर, म.गां. बिल्डिंग, 7 नेताजी सुभाष रोड़, मुम्बई 400002
गांधीवादी विचारधारा को प्रोत्साहित कर आम लोगों के लिए साहित्य की सेवा कर रही पत्रिका में उपयोगी रचनाओं का प्रकाशन किया गया है। अंक में क्यो सिकुड़ रहा है हिंदी का साहित्य संसार(महिप सिंह), दलित चिंतन का उदभव और आदिकालीन साहित्य(डाॅ. चंद्रभान सिंह यादव), भारतीय साहित्यः अवधारणा और आधार(डाॅ. मनोज पाण्डेय), हिंदी पत्रकारिताः नई चुनौतियां एवं जन अपेक्षाएं(सुरेश उजाला), नई कविताःइतिहास चिंतन(डाॅ. घनश्याम सिंह), आधुनिक नारी की वैचारिक स्वतंत्रताएवं परिवेश की चुनौतियां कथा साहित्य के संदर्भ में(डाॅ. अर्जुन के तड़वी), वैश्वीकरण के युग में बाज़ारीकरण का प्रभाव(जे.डी. डामोर), राजभाषा हिंदी का स्वरूप विवेचन(डाॅ. बैजनाथ प्रसाद) एवं शशि मिश्रा की पुस्तक समीक्षा सहित अन्य आलेख व रचनाएं प्रभावित करती हंै। कर्म पर एकाग्र संपादकीय प्रभावित करता है।

2 टिप्पणियाँ

  1. अखिलेश जी, आपका कार्य अत्‍यंत सराहनीय है। बहुत परिश्रम और विचारपूर्वक आपने हिन्‍दी की साहित्यिक पत्रिकाओं को एक मंच पर ला खड़ा किया है। अब से पहले इस तरहका कार्य मेरी नजर में कहीं नहीं आया। इस अनोखी और सार्थक पहल के लिए साधुवाद।

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  2. जयपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका अक्‍सर भी पिछले तीन-चार वर्षों से महत्‍वपूर्ण कार्य कर रही है, आप इस पर भी कुछ लिखें तो पाठकों को लाभ होगा।

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