पत्रिका-समावर्तन, अंक-जनवरी.10, स्वरूप-मासिक, प्रधान मुकेश् वर्मा, अध्यक्ष संपादक मण्डल-रमेश दवे, संपाक-निरंजन श्रोत्रिय, पृष्ठ-96, मूल्य-20रू.(वार्षिक 240रू.), ईमेलः samavartan@yahoo.com , फोनः (0734)2524457, सम्पर्क-माधव 129 दशहरा मैदान, उज्जैन म.प्र.
ख्यात पत्रिका समावर्तन का समीक्षित अंक जग प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार मंजूर एहतेशाम जी पर एकाग्र है। एहतेशाम जी ने भारतीय मुस्लिम समाज व उसकी समस्याआंे पर गंभीरतापूर्वक चिंतन किया है।उनका संपूर्ण लेखन इस बात के लिए समर्पित है कि जब दोनों संप्रदाय सामाजिक सांस्कृतिक रूप से एक समान हैं तथा उनकी परंपराएं एवं मान्यताएं भी एकसी हैं तो फिर अनावश्यक संघर्ष आखिर क्यो? इसी बात को उन्होंने अपने साक्षात्कार में भी स्पष्ट किया है। उनके ख्यात उपन्यास सूखा बरगद पर सम्मानीय आलोचक डाॅ. धनंजय वर्मा ने उनके लेखन को तत्कालीन सामाजिक सांस्कृतिक चिंता में किया गया हस्तक्षेप माना है। उनकी कहानियां धरती पर, रास्ते में तथा छतरी अपनी विषयगत व विधागत विशेषताओं के कारण हमेशा याद रखी जाएंगी। पत्रिका के इस अंक में श्रीराम दवे की कविताएं प्रकाशित की गई हैं। इन कविताओं को श्री रमेश दवे ने पत्थर पर खुदी फूलों की बेला से खुशबू की तरह माना है। कैलाश पचैरी, अनूप सेठी, उमाशंकर चैधरी की कविताएं समकालीन समाज का लेखा जोख प्रस्तुत करती हैं। सच्चितानंद जोशी की कहानी तथा पिलकेन्द्र अरोरा एवं सतीश दुबे की लघुकथाएं भी समय को भेदकर उसकी परख करती दिखाई देती हैं। ख्यात रंगकर्मी रतन थियम पर गिरीश रस्तोगी, जयदेव तनेजा एवं नवीन डबराल(अनुवादित आलेख) ने विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला है। प्रेम शशांक, महावीर अग्रवाल, आभा भार्गव, मोहम्मद रफीक खान एवं भगवतीलाल राजपुरोहित के आलेख भी पाठकों को अवश्य ही पसंद आएंगे। पत्रिका का निखरा हुआ रूप व गहन साहित्यिक समझ प्रभावित करती है।

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