पत्रिका-सृजन गाथा, अंक-38 जुलाई.09, स्वरूप-मासिक, संपादक-जयप्रकाश मानस, पृष्ठ-ई पत्रिका(इंटरनेट पर उपलब्ध), मूल्य-फ्री पढ़ने के लिए उपलब्ध, बेव यूआरएल-- http://www.srijangatha.com/
इंटरनेट पर उपलब्ध ई पत्रिका सृजन गाथा का समीक्षित अंक इस वर्ष का 04 अंक है। हमेशा की तरह पत्रिका का स्तर अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं से कमतर नहीं है। अंक में मुक्तिबोध तथा चन्द्रकांत देवताल जी को उनकी कुछ प्रमुख कविताओं के माध्यम से पुर्नप्रस्तुत किया गया है। अंक में प्रकाशित प्रमुख कवियों में --नवल किशोर कुमार, गिरीश पंकज, अष्टभुजा शुक्ल एवं नंदकिशोर आचार्य शामिल हैं। ‘माह के कवि’ स्तंभ के अंतर्गत नीरज दईया की कुछ सार्थक व पठ्नीय कविताओं को प्रकाशित किया गया है। सुदर्शन प्रियदर्शनी(प्रवासी कविता) की कविता पढ़कर विदेशों में रह रहे भारतीयों की भारत के प्रति चिंता व उसके विकास की मंशा का पता बखूबी चलता है। उडिया कहानी दुःख अपरिमित(डाॅ. सरोजिनी नायडू) एक अच्छी कहानी है जो आज के मनुष्य के आसपास बुनी रची गई है। समकालीन कहानी के अंतर्गत डर(डाॅ. सरजू प्रसाद) एवं प्रवासी कहानी स्तंभ के अंतर्गत एक पाती(प्रतिष्ठा शर्मा) की कहानियां नई सदी की कहानियां हैं जहां प्रस्तुतिकरण व विषय वस्तु सब कुछ नया प्रतीत होता है। सुनील गज्जानी व मुकेश पोपली की लघुकथाएं पत्रिका की ख्याति के अनुरूप हैं। डाॅ. शोभाकांत झा का ललित निबंध ‘भोग और शक्ति’ ख्यात हिंदी साहित्यकार व निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के निबंधों की याद ताज़ा कर देता है। पत्रिका की अन्य रचनाएं व प्रस्तुति इंटरनेट के पाठक को बांधे रखने में सफल हैं। इस अच्छे अंक व उसके उत्कृष्ट संपादकीय के लिए संपादक व उनकी टीम बधाई की पात्र है।

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