पत्रिका-वागर्थ, अंक-171, अक्टूबर.09, स्वरूप-मासिक, संपादक-विजय बहादुर सिंह, पृष्ठ-146, मूल्य-रू.20(वार्षिक 200रू.), सम्पर्क-भारतीय भाषा परिषद, 36-ए, शेक्सपियर शरणि, कोलकाता 700017 भारत फोनः (033)22817476, ई मेलः bbparishad@yahoo.co.in
पत्रिका का समीक्षित अंक साहित्यकारों के साथ साथ आम पाठकों के लिए पठनीय व संग्रह योग्य रचनाओं को संजोये हुए है। अंक में ख्यात विचारक किशन पटनायक का विचारपूर्ण आलेख गुलाम दिमाग का छेद गहन व विशद अध्ययन की मांग करता है। राममनोहर लोहिया जी का आलेख हिंदु बनाम हिंदु तथा शब्बीर हुसैन और जमुना प्रसाद की कविताएं आज के संदर्भ में भी उतनी ही उपयोगी हैं जितनी वे कई बर्ष पूर्व थीं। मनोज कुमार झा व सुधीर सक्सेना की कविताएं बिलकुल नए संदर्भ तथा तानेबाने के साथ अपनी बात रखती हुई दिखाई देती हैं। सूर्यनारायण रणसुभे, श्रीभगवान सिंह एवं विजय कांत के आलेख इन लेखकों के गहन अध्ययन का सुखद परिणाम है। सिद्वेश व अमित मनोज की कहानी तथा ख़ालिद जावेद की कथाओं के रूपांतर सरसता लिए हुए हैं। सुदर्शन वशिष्ठ व रामकुमार आत्रेय की कविताएं तथा रत्नेश कुमार की लघुकथा वागर्थ के हर इंटरनेट पाठक को अवश्य ही पसंद आएंगी। पत्रिका की अन्य रचनाएं ग़ज़ल व स्थायी स्तंभ भी इसे उपयोगी व संग्रह योग्य बनाते हैं। पत्रिका के इस 171 वे पडाव के लिए बधाई।

2 टिप्पणियाँ

  1. वागर्थ का ये अंक तो मेरे लिये बहुत ही खास है अखिलेश जी। मेरी दो ग़ज़लें जो छपी हैं। बच्चों-सा खुश हूं।

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