पत्रिका-अक्षरा, अंक-जुलाई-अगस्त.09, स्वरूप-द्वैमासिक, प्रधान संपादक-कैलाश चंद्र पंत, प्रबंध संपादक-सुशील कुमार केड़िया, संपादक-डाॅ. सुनीता खत्री, पृष्ठ-120, मूल्य-रू.20 (वार्षिक रू.120), संपर्क-म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिंदी भवन, श्यामला हिल्स, भोपाल 462.002(भारत)
पत्रिका का अंक 102 आंशिक रूप से प्रेमचंद्र पर एकाग्र है। कमल किशोर गोयनका, सामसिंह यादव, पाण्डेय शशिभूषण शीतांशु, गजानन चव्हाण तथा विद्याभूषण मिश्र के आलेख पे्रमचंद्र के साहित्य पर वर्तमान संदर्भ में पुनर्विचार करते हैं। प्रख्यात आलोचक तथा साहित्यकार रमेश चंद्र शाह ने कवि, कविता तथा कतिता के स्वरूप पर विस्तृत रूप से विचार किया है। निर्मला वर्मा का आलेख, विश्वास पाटिल का निबंध तथा ज्योत्सना मिलन का संस्मरण ऐसी रचनाएं हैं जो आजकल दूसरी साहित्यिक पत्रिकाओं में नहीं पढ़ने में आ रही है। कहानियां विशेष रूप से शुभदा मिश्र की कहानी संजीवनी तथा साबिर हुसैन की कहानी कुसुम दी अधिक प्रभावित करती है। सुनीत जैन व उमेश मेहतो की कविताएं भी आधुनिक संदर्भ तथा प्राचीन मान्यताओं के मध्य सेंतु का कार्य करती प्रतीत होती है। संतोष खरे ‘साहित्य में गुटवाद’(व्यंग्य) की तह तक नहीं पहुंच सके हैं। घनश्याम अग्रवाल, विजय बजाज तथा विकास मानव की लघुकथाएं अच्छी लगी। शेष रचनाएं, समीक्षाएं स्थायी स्तंभ तथा समाचार भी पठनीय व संग्रह योग्य हैं।

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