पत्रिका-परती पलार, अंक-अक्टूबर.दिसम्बर08, स्वरूप-त्रैमासिक, प्र. संपादक-नमिता सिंह,पृष्ठ-170, मूल्य-20रू.(वार्षिक80रू.), संपर्क-आश्रम रोड़, वार्ड नं. 08, अररिया 854311(भारत)
पत्रिका का समीक्षित अंक प्रकाशन के काफी अधिक समय बाद समीक्षा के लिए प्राप्त हुआ है। इस काव्य विशेषांक में कविता के विभिन्न रूप के साथ-साथ अन्य विधाओं की रचनाओं को भी स्थान दिया गया है। पत्रिका में प्रकाशित आलेखों में नई कविता में प्रगतिवाद(डाॅ. उदित कुमार वर्मा), गुलाब के रंग बिरंगे मिथक(बनवारी लाल ऊमर वैश्य) अधिक प्रभावशाली हैं। प्रो. अशोक कुमार झा का यात्रा वृतांत ‘मैला आंचल-बहती नदिया सौरा की..... रिपोतार्ज की सी प्रस्तुति है जिसे पढ़कर रचना का आनंद प्राप्त होता है। कहानियों में लूट का माल-दिले बेरहम(उपेन्द्र नाथ झा अमरावत), जीवन और स्वप्न(मनोज तिवारी) तथा रेखा(मोती लाल शर्मा) पठ्नीय तथा विचारणीय रचनाएं हैं। गालिब और कबीर पर लिखे गए आलेखों में कुछ प्रमुख बातों का उल्लेख लेखकों द्वारा किया जाना छूट गया हैै। जो आवश्यक प्रतीत होती हैं। ओंकार लाल शर्मा ने डाॅ. शिवमंगल सिंह सुमन पर अच्छा संस्मरण लिखा है। चूंकि यह कविता अंक है इसलिए इसमें कविताओं की अधिकता है। विविधता के रूप में अंक में हाइकू, झणिकाएं, मुक्तक, दोहे, ग़ज़ल, गीत, कविता को पर्याप्त स्थान दिया गया है। सुरेश उजाला, पं. गिरिमोहन गुरू, अनिल कुमार, चन्द्रसेन विराट, रामकिशोर कपूर, डाॅ. यू.एस. आनंद, प्रभा जैन, डाॅ. परमलाल गुप्त, प्रो. भगवान दास जैन, रामनिवास मानव, सुखदेव नारायण, चांद शेरी, रोहित शुक्ल रोहित, कादिर लखीमपुरी, ओमप्रकाश मंजुल विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। पत्रिका की संपादक नमिता सिंह ने कोशी में आई बाढ़ की विभीषिका पर बहुत ही मार्मिक संपादकीय लिखा है। अररिया जैसे छोटे से स्थान से प्रकाशित होने वाली बडे़ फलक की यह पत्रिका ने प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं से उपेक्षित रचनाकारों को स्थान देकर उनके साहित्य से पाठक को अवगत कराया है इसके लिए परती पलार बधाई की पात्र है। (पत्रिका की संक्षिप्त जानकारी)

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