पत्रिका-मैसूर हिंदी प्रचार परिषद् पत्रिका, अंक-जनवरी.09,स्वरूप-मासिक, प्रधान संपादक-डाॅ. बि. रामसंजीवैया गौरव संपादक-डाॅ. मनोहर भारती, मूल्य-5रू.वार्षिक-50रू. संपर्क-मैसूर हिंदी प्रचार परिषद्, 58, वेस्ट आॅॅॅफ कार्ड़ रोड़, राजाजी नगर, बेंगलूर 560.010 कनार्टक (भारत)
पत्रिका का समीक्षित अंक प्रत्येक अंक की तरह साहित्यिक सामग्री से भरपूर है। इस अंक में राजेन्द्र कुमार बादेल ने गोस्वामी तुलसीदास की आज के संदर्भ में उपयोगिता पर प्रकाश डाला है। आज मनुष्य तनावपूर्ण जीवन से अशांत है जिसे तुलसी साहित्य शांति प्रदान करता है। लेखक के अनुसार उस काल की वर्ण व्यवस्था, शासन व्यवस्था, राजनीतिक दृष्टिकोण आदि अनुकरणीय है जिसका तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में विस्तृत रूपस से वर्णन किया है। रूप कमल चैधरी ने ‘तुलसी की शरणागति’ आलेख में बहुत ही सुंदर ढंग से स्पष्ट किया है कि तुलसी साहित्य की शरण में जाने पर मनुष्य हर तरह से शुद्ध हो जाता है। मन वचन तथा कर्म से वह अपना अंतःकरण शुद्ध कर लेता है। भक्ति मार्ग ही एक ऐसा मार्ग है जो संपूर्ण प्राणि जगत का तारणहार है। डाॅ. अमर सिंह वधान ने गणेश शंकर विद्यार्थी पर लिखे अपने आलेख में उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर अच्छा विश्लेषणात्मक आलेख लिखा है। इसरार कुरेशी हिंदी ग़ज़ल एवं दोहे की विकास प्रक्रिया तथा शिल्प को समझाने में पूर्णतः सफल रहे हैं। डाॅ. जसवंत भाई जी पंडया ने प्रणामी संप्रदाय को अपने लेखन का आधार बनाया है। इसके अतिरिक्त ‘भाषाई अखण्डता बनाम कन्नड़’(प्रो. बी. बै ललिताम्बा), ‘कन्नड़ साहित्य’(टी. जी. प्रभाकर प्रेमी) तथा क्रिकेट और आतंकवाद’(हितेश कुमार शर्मा) भी पठ्नीय आलेख है। पत्रिका का व्यंग्य ‘विश्वस्त है विश्वासघाती’(अरविंद मिश्र) अधिक प्रभावित नहीं कर पाया है। देवेन्द्र कुमार मिश्र की कहानी साहित अन्य रचनाएं, कविताएं व ग़ज़ल गीत भी अच्छे लगते हैं। सबसे अधिक प्रसन्नता की बात यह है कि दक्षिण भारत से प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका गंभीर हिंदी साहित्य प्रस्तुत कर रही है जिसके लिए इसकी प्रशंसा की जाना चाहिए।

1 टिप्पणियाँ

  1. दक्षिण भारत से निकलने वाली इस पत्रिका की समीक्षा से पता चलता है कि दक्षिण में भी हिंदी में स्तरीय कार्य हो रहा है। हिंदी इतिहास में दक्षिण के योगदान की चर्चा होनी चाहिए।

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